Yashasvi Jaiswal Success Story In Hindi – बेटे ने किराणे की दूकान पर काम किया और गोलगप्पे भी बेचे और जो लोग मुझे पागल कहते थे वो आज मेरे साथ आकर फोटो खिंचवाते है और पूछतें है आपके बेटेने आपको क्या गिफ्ट दिया तो में कहता हु की, “दुनिया मुझे उसके नाम से जानने लगी है यही मेरे लिए जीवन का सबसे बड़ा तौफा है।”
ये शब्द है उस पिता के जिन्होंने अपने बच्चे को आगे बढ़ने का मौक़ा दिया, उसको रोका नहीं और बच्चे का हर पल में साथ दिया। बच्चे का नाम है यशस्वी जैस्वाल उत्तरप्रदेश के भदोही जिलें के सुरियावां गांव वहा के रहने वाले है। यशस्वी जैस्वाल पिताजी भूपेंद्र जी हार्डवेयर की दूकान चलाते है और उनकी माताजी गृहणी है।
Yashasvi Jaiswal Success Story In Hindi- यशस्वी जायसवाल
ये कहानी है यशस्वी जायसवाल की जिन्होंने ने पुरे दुनिया में नाम रोशन किया है और उनकी कहानी एक तपस्वी की है और सिखाती है की जीवन में, “मेहनत का साथ कभी मत छोड़िये तब जिंदगी आपको बहोत आगे लेकर जाएंगी।”
यशस्वी जायसवाल ने मुंबई में आज़ाद मैदान के बाहर पानी पूरी बेचीं, फल बेचे यहां तक की वो कई बार जमीन पर सोये इनका बहुत ही हलांकिकी परस्थिति होने के बावजूद इन्होने अपने सपने को नहीं छोड़ा।
दस साल की उम्र में ही अपने पिता को कहा था की मुंबई जाना है और पिताजी को अपने बच्चे का टैलेंट समझमे आया था, इसीलिए मुंबई के वरली के इलाके में रहनेवाले वाले अपने दोस्त संतोष के यहाँ यशस्वी को भेज दिया और ५-६ महीने यशस्वी वही रहे पर रिश्तेदार का घर बहोत ही छोटा था और इतनी जगह भी नहीं थी वहा की लंबे समय तक रह पाते थे।
आज़ाद मैदान में जाते थे प्रैक्टिस के लिए और इनके जो रिलेटिव थे संतोष जी ने यशस्वी जायसवाल को उनके पहचान के ग्राउंडमैन सुलेमान से बात की और कहा की यशस्वी को यही पर रहने की व्यवस्था करवा दीजिये।
तीन साल तक यशस्वी जायसवाल ने अपना जीवन टेंट में बिताया और क्रिकेट के जो गुण और बारीकियां थी वो सीखी और वो कहते है तीन साल का संघर्ष जो था वह बहोत ही कड़ा संघर्ष था उनके लिए।
जमीन पर सोते थे और अपने पिता को फ़ोन करकर कहते थे, “पापा बहोत चींटी काट रही है।” तब पिताजी कहते थे, “बेटा तकलीफ है तो वापस आजाओ लेकिन यशस्वी कहते थे बूट पोलिश करलूँगा पर बिना कुछ बने वापस नहीं आऊंगा और आप देखना यही तकलीफे यही संघर्ष मुझे बहुत आगे बढ़ाएगा।”
एक इंटरव्यू में यशस्वी ने बताया की वहा की लाइफ इजी नहीं थी क्यूंकि टेंट में राते गुजारने होती, लाइट नहीं रहती और पैसे इतने नहीं थे की किसी बेहतर जगह जा सके। मैदान में बने टेंट में ही उन्हें आसरा लेना पड़ा और जब वहा सोने को जगह मिलती थी तो कई बार वहा जो लोग रहते थे वो बुरा बर्ताव करते थे और पिटाई भी कर देते थे।
जब ये इंटरव्यू में अपनी लाइफ स्टोरी बता रहे थे तब इमोशनल हो गए और उनके आँखों में आंसू आगए। आज़ाद मैदान के बाहर जब रामलीला होती थी उसमे वह पानीपुरी और फल बेचा करते थे।
कई राते ऐसी आइ जिनके साथ ग्राउंड पर रहे उनसे लड़ाई हुई और कई बार भूका ही सोना पड़ा और कहते थे की रामलीला के दौरान अच्छी कमाई हो जाती और में नहीं चाहता था की मेरी टीम मेरे पास पानीपुरी खाने आये और कभी-कभी वो वहा आते है तो उन्हें सर्व करना मुझे अच्छा नहीं लगता पर करना पड़ता था क्यूंकि कुछ पैसे कमाने के लिए।
यशस्वी जायसवाल हमेशा अपनी कोशिश करता रहता था और हफ्ते के २००-३०० रुपये कमा लेता था। वो कहते थे की मेने देखा की उस दौर में अपनी उम्र के बच्चे अपने साथ खाना लेकर आते थे और उनके पेरेंट्स उनको बड़ासा लंच बॉक्स भेजते थे और मेरे पास ऐसा कुछ नहीं था।
हर रात यशस्वी जयसवाल की एक कैनडल लाइट डिनर की तरह बीती और वो कहा है ना की, “गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिले ना मोष। गुरु बिन लखे ना सत्य को, गुरु बिन मिटे ना दोष।” ये कबीर दास जी का दोहा काफी है यशस्वी जैस्वाल की जिंदगी को समझने के लिए।
यशस्वी जायसवाल के फादर ने कहा की यशस्वी जब १३ साल की उम्र में जब वो आज़ाद मैदान पर खेल रहे थे तब वहा एक बार ज्वाला सिंह सर आये उनकी सांताक्रूज़ में क्रिकेट की एक अकाडेमी है और यशस्वी के गेम से बहोत इम्प्रेस हुए और उन्होंने यशस्वी से पूछा की कोच कोण है तुम्हारा तभी यशस्वी बोले, “कोई कोच नहीं में जो बड़े क्रिकेटर्स है उनको देखकर सीखता हूँ” इसके बाद ज्वाला सर ने उनसे बात की और दो दिन के अंदर अपनी अकाडेमी में लेकर गए।
यशस्वी जायसवाल का स्ट्रगल बहोत लंबा होता अगर ज्वाला सर के रूप में उनको गुरु ना मिलता और कोच साहब ने कहा की, “मेरी जब २०१३ में मुलाक़ात हुई यशस्वी से तो मुझे उसके अंदर मेरी छविं दिखाई दी और में भी उत्तरप्रदेश के गोरखपुर से मुंबई क्रिकेटर बनने आया था और रमाकांत आचरेकर सर के पास मैंने क्रिकेट को सीखा था, में भी एक-एक रुपये के लिए तरस ता था।”
कोच ज्वाला कहते है “जब में यशस्वी जायसवाल से मिला तब मेने निच्यय किया की ये बच्चा मेरी तरह क्रिकेटर बनने से पीछे नहीं रहना चाहिए और मैंने उसे अपने साथ खुदके के घरमे रखने का फैसला ले लिया।”
कोच साहब कहते है की जब मेने यशस्वी जायसवाल को पहली बार जब खेलते हुए देखा और उससे बातचीत करने से पता चला की उसके पास तो बेसिक सुविधाएं भी नहीं है और वो बुनियादी चींजों के लिए संघर्ष कर रहा है और उसके पास ना खाने के लिए पैसे है, ना रहने के लिए घर है।
एक क्लब में गार्ड के साथ रह रहा था और सब से बड़ी बात थी की वह अपने घर से दूर मुंबई जैसे शहर में अकेला रह रहा था। यहाँ से यशस्वी जायसवाल के जीवन ने करवट ली और उनके कोच ज्वाला सहाब ने उनको ने यशस्वी जायसवाल के टैलेंट को तराशा और उनकी जो कोचिंग अकाडेमी थी वह लेकर गए और शानदार कोचिंग दी।
२०१९ विजय हजारे ट्रॉफी में यशस्वी जायसवाल अपने टैलेंट का शानदार प्रदर्शन किया और कमाल कर के दिखाया। जिसके बाद उन्हें अंडर १९ वर्ल्डकप में जगह मिली जहा उन्हें प्लेयर ऑफ़ दी टूर्नामेंट से चुना गया।
यशस्वी जायसवाल की तपस्या और उनकी ट्रेनिंग बाकियों से बहोत ही अलग रही है। इन्होंने एक जगह पर खुद को मानों कैद कर लिया था और अपनी कमजोरियों पर काम किया, मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। यशस्वी जायसवाल की सक्सेस स्टोरी है उसमे बहोत बड़ा हाथ है एक टीम राजस्थान रॉयल्स और उनकी अकादमी का भी है।
नागपुर से ९० मिनट की दुरी पर एक गांव है जहा पर राजस्थान रॉयल्स की अकादमी है वहा यशस्वी जायसवाल ने बहोत मेहनत की उस अकादमी जब इनको लेजाया गया तो इन्होने हर चीज से डिस्टेंस बना ली और सिर्फ प्रैक्टिस पर ध्यान दिया और यहाँ तक जब कोविड आया तब भी वो प्रैक्टिस करते रहे और अपनी इस साधना को यशस्वी जैस्वाल ने बिलकुल भी रुकने नहीं दिया।
राजस्थान रॉयल्स टीम के स्ट्रेटेजी और परफॉरमेंस डायरेक्टर है जुबिन भरुचा उन्होंने यशस्वी जायसवाल के टैलेंट को निखार ने में कोई कमी नहीं छोड़ी और उन्होंने एक ही फॉर्मूला बताया यशस्वी को, “आप एक ही शॉट की प्रैक्टिस करते जाए जब तक की वो परफेक्ट ना हो और चाहे एक शॉट को परफेक्ट करने के लिए ३०० बार क्यूँ ना खेलना पड़े और तब तक नहीं रुकना है जब तक की वो शॉट परफेक्ट ना हो जाए।”
परफॉरमेंस डायरेक्टर जुबिन भरुचा की ये बात उनके दिमाग में फिट बैठ गयी और वैसे ही किया। आपने देखा होगा की यशस्वी जायसवाल टेस्ट मैच में भी वनडे और टी २० की मैचों की तरह खेलते है।
यशस्वी जायसवाल अपने लाइफ में बहुत स्ट्रगल किया पर अपने लक्ष्य के प्रति डटे रहने और कठोर मेहनत से उन्होंने अपने सपने को साकार किया। वो कहते है ना, “शाखें नहीं तो फूल भी पत्ते भी आएंगे ये दिन अगर बुरे है तो अच्छे दिन भी आएंगे।”
तपस्वी यशस्वी जायसवाल ने कमाल करके दिखा दिया है और सम्मान सबसे बड़ी चीज होती है ऐसे ही एक क्रिकेट प्लेयर के लिए अचीवमेंट्स मैटर करती है।
सीख:- कमाल के क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल की ये मोटिवेशनल कहानी आपने पढ़ी और जो आपको सिखाती है की, “जीवन में तपस्वी बनना होगा यशस्वी बनने के लिए। तभी दुनिया आपका गुणगान करेंगी और कर दिखाओं कुछ ऐसा की दुनिया भी करना चाहे आपके जैसा।”
FAQ Yashasvi Jaiswal Success Story In Hindi
- यशस्वी जायसवाल के पिता क्या करते थे?
यशस्वी जायसवाल पिताजी भूपेंद्र जी हार्डवेयर की दूकान चलाते है और उनकी माताजी गृहणी है। - यशस्वी जायसवाल का घर कहां है?
यशस्वी जायसवाल घर मुंबई में है। - यशस्वी जायसवाल जर्सी नंबर क्या है?
६४ नंबर - क्रिकेट में सबसे महंगा पानी कौन पीता है?
विराट कोहली जो सबसे महंगा एवियन पानी पीते हैं और जिसके एक लीटर बोतल की कीमत 600 रुपए है
आपको Yashasvi Jaiswal Success Story In Hindi कैसी लगी हमे कमेन्ट करके के जरूर बाताए और ऐसे ही अच्छी कहानियां (Motivational Story In Hindi) पढ़ने के लिए Hindi Ki Story के साथ जुड़ते रहे ! आपका धन्यवाद !