Top 5 Largest Empires in History Of India | भारत के इतिहास में सबसे बड़े साम्राज्य

Top 5 Largest Empires in History Of India – भारतीय इतिहास की शुरुवात ही संघर्ष और महाभयानक युद्धों से शुरू हुई। कई महान योद्धाओं ने इस भूमि को अपने खून से सींचा है और हजारों, लाखों सेनाओं के अरमान इस भूमि के सामने नेस्तानाबूत कर दिए। अंत में वही हुआ जिसकी ताकत उसकी सत्ता और भारत पर एक छत्र शासन स्थापित करने के लिए कई तलवारे उठी और कई वक्त के दायरे में सिमट गयी थी।

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आए आज हम इन विशाल साम्राज्य से रुक्सत होते है जिन्होंने भारत पर अपनी हुकूमत कायम की और अपने विशाल साम्राज्यों का निर्माण किया गया।

Table of Contents

१. मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) – Top 5 Largest Empires in History Of India

Top 5 Largest Empires in History Of India
मौर्य साम्राज्य

मौर्य साम्राज्य भारत का अबतक का सबसे विशाल  साम्राज्य रहा है जिसने सीधे अखंड भारत पर शासन किया एक साधारण से बालक ने चंद्रगुप्त मौर्य ने पंजाब के यवुनवों की सेनावों को परास्त करके मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। वही से उन्होंने मगध पर हमला करके अपना अधिकार स्थापित किया। मगध विजय के बाद मौर्य साम्राज्य लगातार अपनी बुलंदिओं पर पहुंचता गया।

मौर्य साम्राज्य की स्थापना:

  • राजा चंद्रगुप्त मौर्य ने ३२२ ईसा पूर्व में मगध (जिसे आज का बिहार कहा जाता है) में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी।
  • चाणक्य (कौटिल्य) ने चंद्रगुप्त मौर्य को राज्य प्राप्ति करने में सबसे बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

मौर्य साम्राज्य के प्रमुख शासक:

  • चंद्रगुप्त मौर्य (३२२-२९७ ईसा पूर्व)
  • बिंदुसार (२९७-२७२ ईसा पूर्व)
  • अशोक (२७२-२३१ ईसा पूर्व)

मौर्य साम्राज्य की उपलब्धियां:

  • मौर्य साम्राज्य अपनी शक्तिशाली सेना, कुशल प्रशासन और व्यापार के लिए जाना जाता था। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया और पूरे मौर्य साम्राज्य में इसका प्रचार किया।
  • अशोक स्तंभों का निर्माण किया जो उनके शासनकाल के दौरान ही स्थापित किए गए थे और अशोक स्तंभ जो आज भी भारतीय कला और संस्कृति का प्रतीक हैं। मौर्य साम्राज्य ने कला, वास्तुकला और साहित्य के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • सम्राट अशोक के काल में तो मौर्य साम्राज्य अपने चरम पर पहुंच चुका था। मौर्य साम्राज्य दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में फैला एक विशाल साम्राज्य हुआ करता था।
  • सम्राट अशोक के मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर होते चला गया ५० लाख वर्ग किलोमीटर सीमाक्षेत्र में फैला मौर्य साम्राज्य आज के भारत से भी कई विशाल था। उस काल में मौर्य साम्राज्य की जनसंख्या तक़रीबन ५ करोड़ हुआ करती थी। मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटली पुत्र हुआ करती थी।

मौर्य साम्राज्य का पतन:

मौर्य साम्राज्य के पतन होने का इतिहास काफी रोचक है। मौर्य साम्राज्य के अंतिम सम्राट बृहद्रथ का शासन १८७ ईसापूर्व से १८० ईसापूर्व तक था। सम्राट बृहद्रथ की हत्या उनके ख़ास सेनापति पुष्यमित्र शुंग कर दी जिसके बाद शुंग साम्राज्य का उदय हुआ और मौर्य साम्राज्य का सदा के लिए अंत हो गया। जिसे बाद शुंग राजवंश के नाम से जाने लगा था।

मौर्य साम्राज्य का महत्व:

  • मौर्य साम्राज्य भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण कालखंड हुआ करता था।
  • मौर्य साम्राज्यने एक मजबूत और एकीकृत भारत की नींव रखी थी।
  • मौर्य साम्राज्यने भारतीय संस्कृति और सभ्यता को पूरे विश्व में फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

मौर्य साम्राज्य के बारे में महत्वपूर्ण रोचक तथ्य:

  • मौर्य साम्राज्य अपने समय का सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक था।
  • सम्राट अशोक ने 250,000 से अधिक स्तंभों का निर्माण करवाया था और जिनमें से 40 आज भी मौजूद हैं।
  • मौर्य साम्राज्य में महिलाओं को शिक्षा और सार्वजनिक जीवन में भाग लेने का अधिकार था।
  • मौर्य साम्राज्य ने ही प्राचीन भारत में कला और वास्तुकला के एक स्वर्ण युग की शुरुआत की थी।
  • मौर्य साम्राज्य भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है और मौर्य साम्राज्य ने प्राचीन भारत को एक शक्तिशाली और समृद्ध राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

२. मुग़ल साम्राज्य (१५२६-१८५७ ईस्वी)

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मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य भारत का दूसरा बड़ा साम्राज्य था। १५२६ में दिल्ली के इब्राहिम लोदी की टक्कर बाबर से हुई जिसमे बाबर जीत गया और इस जीत के बाद ही दिल्ली में एक नए साम्रज्य की स्थापना हुइ जिसे आम बोलचाल में सल्तनत मुगलिया कहा जाता था। मध्य एशिया से आये कुछ तुर्क मुगलों द्वारा इस मुग़ल साम्राज्य का निर्माण हुआ था।

मुग़ल साम्राज्य की स्थापना:

  • बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध २१ अप्रैल,१५२६ के लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर बाबर ने मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी थी।
  • बाबर के बाद, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब जैसे कई महान शक्तिशाली शासकों ने मुग़ल साम्राज्य पर अपना शासन किया था।

मुग़ल साम्राज्य के प्रमुख शासक:

  • बाबर (२० अप्रैल १५२६ – २६ दिसंबर १५३०
    बाबर का असली नाम ज़हीरुद्दीन मुहम्मद था। बाबर का जन्म उज़्बेकिस्तान हुआ था और बाबर ही मुग़ल साम्राज्य का प्रथम शासक हुआ करता था।
  • हुमायूँ (१५३०-१५५६)
    मुग़ल सम्राट बाबर का पुत्र नसीरुद्दीन हुमायूँ था। हुमायूँ के पास मुग़ल साम्राज्य बहुत साल तक नही रहा, पर मुग़ल साम्राज्य की बढ़ती नींव रखने में हुमायूँ का योगदान काफी रहा है।
  • अकबर (२७ जनवरी १५५६ – २९ अक्तूबर १६०५)
    जलाल उद्दीन मोहम्मद मुगल साम्राज्य का तीसरे शासक थे। मुग़ल सम्राट अकबर को अकबर-ऐ-आज़म, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता हैं।
  • जहाँगीर (३ नवंबर १६०५ – २८ अक्टूबर १६२७)
    जहाँगीर अकबर के बड़े पुत्र थे। जहाँगीर के मुराद और दानियाल नामक दो छोटे भाई थे। जहाँगीर ने १६०५-१६२७ तक मुग़ल साम्राज्य के शासक हुआ करते थे।
  • शाहजहाँ (१९ जनवरी १६२८ – ३१ जुलाई १६५८)
    शाहजहाँ मुग़ल साम्राज्य के ५ वे शहंशाह थे। शाहजहाँ अपनी न्यायप्रियता और अच्छे कामों के लिए अपने काल में बड़े लोकप्रिय मुग़ल शासक रहे थे। शहंशाह शाहजहाँ का नाम एक आशिक के तौर पर आज भी लिया जाता है जिन्होंने अपनी खूबसूरत बेग़म मुमताज़ के लिए विश्व की सबसे ख़ूबसूरत इमारत ताज महल का निर्माण करवाया था।
  • औरंगजेब (जुलाई १६५८ – मार्च १७०७)
    औरंगजेब मुग़ल साम्राज्य का छठवाँ शासक था। औरंगज़ेब को आलमगीर नाम से जाना जाता था और औरंगजेब ने ही अकबर के बाद सबसे मुग़ल साम्राज्य पर सबसे अधिक समय तक शासन किया।

मुग़ल साम्राज्य की उपलब्धियां:

  • मुग़ल साम्राज्य अपनी शानदार वास्तुकला, कला, साहित्य और संगीत के लिए पुरे विश्व में जाना जाता था।
  • मुग़ल साम्राज्य का तीसरा शासक अकबर ने १५८२ ईस्वी में “दीन-ए-इलाही” नामक एक नया समरूप धर्म स्थापित किया जो सभी धर्मों का समन्वय करता था।
  • मुग़ल साम्राज्य के पाँचवे शासक शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज़ के लिए ताजमहल का निर्माण करवाया, जो कि विश्व में सात अजूबों में से एक है।
  • मुग़ल साम्राज्य ने भारतीय के कई सारे उपमहाद्वीप में कला, संस्कृति और व्यापार को बढ़ावा दिया।

मुग़ल साम्राज्य का पतन:

  • मुग़ल साम्राज्य ने भारत पर १५२६ से १८५७ तक शासन किया और मुग़ल साम्राज्य एक बहोत ही बड़ा शक्तिशाली साम्राज्य हुआ करता था।
  • मुग़ल साम्राज्य का पतन होने के पीछे के कारण जैसे की:-
  • कमजोर उत्तराधिकारी का होना।
  • औरंगजेब की धार्मिक कट्टर नीतिया।
  • जनता पर उनकी क्षमता से अधिक कर का बोझ था।
  • राजपुत निति का त्याग करना।
  • 18 वीं शताब्दी के आते ही मुग़ल साम्राज्य पूरी तरह से कमजोर हो गया, जिनमें मुग़ल साम्राज्य के बीच आंतरिक कलह, मराठा साम्राज्य का उदय और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का बढ़ता प्रभाव भी शामिल हैं।
  • 1857 में, स्वतंत्रता के पहले युद्ध जिसे सिपाही विद्रोह भी कहा जाता है। उसके के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुग़ल साम्राज्य को पूरी तरह से हटा दिया।

मुग़ल साम्राज्य का महत्व:

  • मुग़ल साम्राज्य भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण कालखंड हुआ करता था।
  • मुग़ल साम्राज्य ने भारतीय उपमहाद्वीप को पूरी तरह से एकजुट करने का और एक प्रभावशाली, समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • मुग़ल साम्राज्य की कला, वास्तुकला और साहित्य ने सदियों से विश्व के लोगों को प्रेरित करने का काम किया है।

मुग़ल साम्राज्य के बारे में कुछ रोचक तथ्य:

  • मुग़ल सम्राटों विभिन्न इमारतों, किलों और महलों का निर्माण किया जो भारतीय विरासत का एक महत्व पूर्ण हिस्सा बन गए।
  • भारत में सबसे पहले गन पाउडर मुग़ल सम्राट बाबर लेकर आये थे।
  • मुग़ल  साम्राज्य के दरबार में “नौ रत्न” नामक नौ विद्वानों का समूह था उसमे बीरबल, तानसेन, अबुल फजल, फैजी, टोडर मल, राजा मान सिंह, अब्दुल रहीम खान-ए-खाना, फकीर अज़ियाओ-दीन और मुल्ला दो पियाज़ा हुआ करते थे।
  • मुगलों के उद्यानों को उनकी सुंदरता और आकर्षक कलाकृति के लिए जाना जाता था।
  • मुग़ल साम्राज्य भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिसने भारतीय कला, संस्कृति, वास्तुकला और साहित्य के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है ।

३. गुप्त साम्राज्य (३२०-५५० ईस्वी) – Biggest empire in history

गुप्त साम्राज्य को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग भी माना जाता है। इस काल में भारत का व्यापार अपने चरम पर पहुंच गया था। गुप्त साम्रज्य के काल में सभी हिन्दू धर्म ग्रंथो को शुद्ध करके वापस लिखवाया गया था।

गुप्त साम्राज्य के काल में व्यापार के बदले अपार सोना आने लगा था और मौर्य साम्राज्य के पतन के विदेशी राष्ट्र भारत के खिलाफ युद्ध का मोर्चा खोलने लग गए थे तभी गुप्त वंश का उदय हुआ था।

गुप्त साम्राज्य की स्थापना:

  • माना जाता है कि उन्होंने मौर्य साम्राज्य का शासन जो था वह पुरे अखंड भारत पर था और मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद गुप्त वंश ने उत्तर भारत में अपना शासन स्थापित किया था।
  • गुप्त वंश के संस्थापक कुषाण शासकों की सामंत थे और अधिकतर इतिहासकारों के अनुसार यह वैश्य थे गुप्त वंश की स्थापना श्री गुप्त ने की थी।
    गुप्त साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त प्रथम ने ३१९-३२० ईस्वी में की थी। चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का महत्वपूर्ण राजा था इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी।

गुप्त साम्राज्य के प्रमुख शासक:

  • चंद्रगुप्त प्रथम (३२०-३३५ ईस्वी)
    चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का महत्वपूर्ण राजा थे उन्हें महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी। राजा चंद्रगुप्त प्रथम का विवाह लिच्छवी वंश की राजकुमारी कुमार देवी से हुआ था। चंद्रगुप्त प्रथम ने ३१९ ईस्वी में गुप्त सवंत की शुरुआत की थी।
  • समुद्रगुप्त (३३५-३८० ईस्वी)
    यह कुमार देवी का पुत्र था और अपने आपको लिच्छवी दौहित्र कहता था। समुद्रगुप्त की नीतिया आक्रमक तथा विस्तारवादी थी इसने आर्यावत के ९ राज्यों को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया जबकि दक्षिणवार्त के १२ राज्यों को पराजित कर दिया इन्ही विजयों के कारण इसे “भारत का नेपोलियन” भी कहा जाता है।
  • चंद्रगुप्त द्वितीय (३८० -४१५ ईस्वी)
    चंद्रगुप्त द्वितीय ने मालवा व गुजरात के शक शासकों को पराजित किया शक विजय के उपलब्ध में “विक्रमादित्य” की उपाधि धारण की और यह गुप्त साम्राज्य का पहला शासक था जिसने चांदी के सिक्के चलवाए। चंद्रगुप्त द्वितीय के समय ही चीनी यात्री फह्यान भारत आया था।
  • कुमारगुप्त प्रथम (४१५-४५५ ईस्वी)
    चंद्रगुप्त द्वितीय के बाद कुमारगुप्त प्रथम अगले शासक बने इन्होने ही नालंदा विश्विद्यालय की स्थापना की थी।
  • स्कंदगुप्त (४५५-४६७ ईस्वी)
    कुमारगुप्त के बाद अगला शासक स्कंदगुप्त बना और इसके बाद गुप्त वंश में कई छोटे-छोटे शासक हुए।

गुप्त साम्राज्य की उपलब्धियां:

  • चंद्रगुप्त द्वितीय के काल को भारत का स्वर्ण काल भी कहा जाता है।
  • कुमारगुप्त ने ही अपने शासन काल में नालंदा विश्विद्यालय की स्थापना की थी।
  • समुद्रगुप्त को “भारत का नेपोलियन” कहा जाता है। समुद्रगुप्त ने ९० से अधिक युद्ध जीते और दक्षिण भारत के कई हिस्सों पर विजय प्राप्त की।
  • गुप्त साम्राज्य में ही शिक्षा और साहित्य का विकास हुआ और कालिदास, संस्कृत के महान कवि, इसी काल में रहते थे।

गुप्त साम्राज्य का पतन:

  • कुमारगुप्त के समय में पुष्यमित्रों के आक्रमण ने गुप्त साम्राज्य की एकता पर चोट पहुंचाई।
  • हूणों के आक्रमण से गुप्त साम्राज्य के पतन की शुरुवात हो गयी थी।
  • गुप्त साम्राज्यों का पतन का महत्वपूर्ण कारण यशोधर्मन जैसे सरदारों ने गुप्त साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह किया था।
  • गुप्त वंश के अंतिम शासक की अयोग्यता ने भी गुप्त साम्राज्य को पतन की ओर धकेला था।
  • इन्ही सबका का परिणाम ५५० ईस्वी के आसपास गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया।

गुप्त साम्राज्य का महत्व:

  • गुप्त काल के कुछ महान वैज्ञानिको में सबसे पहला नाम आता है आर्यभट्ट जिन्हे फादर ऑफ़ अलजेब्रा माना जाता है।
  • गुप्त साम्राज्य को स्वर्ण काल का प्रमुख कारन है कला और साहित्य में हुआ विकास है।
  • गुप्त साम्राज्य में पाणिनि और पतंजलि के आधार पर संस्कृत व्याकरण का भी विकास हुआ।
  • कालिदास गुप्त साम्राज्य के महानतम लेखक और कवि थे उनकी कुल ४० रचनाये है।

गुप्त साम्राज्य के बारे में कुछ रोचक तथ्य:

  • गुप्त साम्राज्य के सम्राटों को “विक्रमादित्य” उपाधि से भी जाना जाता था।
  • गुप्त साम्राज्य में सोने की मुद्रा को दीनार भी कहा जाता था।
  • गुप्त साम्राज्य में ही बौद्ध धर्म का भी विकास देखने को मिलता है।
  • गुप्त काल में ही सती प्रथा और बालविवाह का उल्लेख मिलता है।
  • गुप्त साम्राज्य में शासन की बड़ी इकाई देश होती थी और देश का सर्वोच्च राजा होता था और शासन की छोटी इकाई गांव थी जो ग्रामीण के अधीन होती थी।

४. चोल साम्राज्य (८४८-१२७९ ईस्वी)

दक्षिण भारत के शक्तिशाली चोल साम्राज्य की स्थापना ८४८ ईस्वी में विजयालया चोल द्वारा की गयी थी। चोल साम्राज्य के महान योद्धा राजेंद्र चोल ने अपने साम्राज्य को अपनी बुलंदियों पर पहुंचाया इन्होने दक्षिण भारत के साथ-साथ श्रीलंका, बर्मा, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर में एकछत्र शासन स्थापित किया था इनके शासन काल में चोल साम्राज्य भारत से ज्यादा भारत के बाहर फ़ैल गया था।

चोल साम्राज्य ने 300-१२७९ ईस्वी तक लगातार शासन किया और कहा जाता है की चोल साम्राज्य के पास १० लाख सैनिकों की विशाल सेना थी।

चोल साम्राज्य की स्थापना:

चोल साम्राज्य के संस्थापक विजयालया थे (८४८-८७१ ईस्वी) जिन्होंने ८४८ ईस्वी में दक्षिण भारत में चोल साम्राज्य की स्थापना की।
विजयालया ने पल्लवों से तंजावुर पर विजय प्राप्त की और चोल साम्राज्य की नींव रखी।

चोल साम्राज्य के प्रमुख शासक:

  • विजयालया (८४८-८७१ ईस्वी)
    विजयलाया चोल साम्राज्य के पहले संस्थापक थे जिन्होंने चोल साम्राज्य की नींव रखी।
  • आदित्य प्रथम (८७०-९०७ ईस्वी)
    पल्लवों पर विजय पाने के उपरान्त आदित्य प्रथम ने कोंदडराम की उपाधि ली थी।
  • राजराज चोल प्रथम (९८५-१०१४ ईस्वी)
    राजराज चोल प्रथम को चोल साम्राज्य को अपने बुलंदियों पर ले गए और उन्होंने कई लढाईयों में विजय प्राप्त की, जिनमें श्रीलंका पर विजय भी शामिल है।
  • राजेंद्र चोल प्रथम (१०१२-१०४४ ईस्वी)
    राजेंद्र चोल प्रथम को चोल साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली शासक माना जाता है और उन्होंने गंगई कोंड की उपाधि धारण की और गंगई कोंड चोलपुरम नामक नगर की स्थापना भी की थी।
  • कुलोत्तुंग चोल प्रथम (१०७०-११२२ ईस्वी)
    कुलोत्तुंग चोल जो चोल साम्राज्य को कला, साहित्य और वास्तुकला के क्षेत्र में प्रगति करने के लिए जाना जाता है।

चोल साम्राज्य की उपलब्धियां:

  • चोल साम्राज्य ने सबसे पहली शक्तिशाली सेना और नौसेना स्थापित की जिसके बाद उन्होंने भारत के बाहर भी अपने साम्राज्य का विस्तार किया था।
  • चोल साम्रज्य का धर्म, संस्कृति, अर्थव्यवस्ता और साहित्यिक में भी बड़ा योगदान दिया है।
  • चोल साम्राज्य के शासकों ने कृषि के विकास के लिए सिंचाई परियोजना का निर्माण कराया और कावेरी नदी पर बांध बनाया और नहरों का निर्माण किया गया।
  • चोल साम्राज्य में भव्य मंदिरों निर्माण हुआ जैसे तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर का निर्माण किया।
  • चोल साम्राज्य में तमिल साहित्य का काफी विकास हुआ।

चोल साम्राज्य का पतन:

  • १२ वी शताब्दी तक चोल साम्राज्य अच्छे से आगे बढ़ रहा था पर 13 वीं शताब्दी के आरंभिक भाग में चोल साम्राज्य का पतन हो गया और महाराष्ट्र क्षेत्र का परवर्तीय चालुक्यों साम्राज्य का भी १२ वी शताब्दी के अंत तक पतन हो गया।
  • दक्षिण में चोल साम्राज्य की जगह पांड्यो तथा परवर्तीय चालुक्यों की जगह यादवों और कार्तिओं ने ली ये सभी वास्तुकलावों के संरक्षक थे।
    आखिरकार १२७९ ईस्वी में चोल साम्राज्य का पतन हो गया।

चोल साम्राज्य का महत्व:

  • चोल साम्राज्य के सबसे बड़ी उपलब्धियों में विदेशी विजय रही जिसकी वजहसे उन्हें शाही चोल का दर्जा दिया गया।
  • चोल साम्राज्य को स्वर्ण युग भी कहा जाता है क्यों की इस दौर में बड़े मंदिरों और कलाकृतिओं का निर्माण किया गया था।
  • चोल साम्राज्य का प्रशासन विरासत का प्रतीक है यहाँ हमें पूर्णतः विकसित सचिवालय की जानकारी भी मिलती है। ऐसा कहते है की ताड़ के पत्तों का उपयोग कर के चोल साम्राज्य ने शानदार रिकॉर्ड सिस्टम भी बनाया जिसमे भूमि रिकॉर्ड से लेकर इंटेलिजेंस तक के रिकॉर्ड मौजूद थे।

चोल साम्राज्य के बारे में कुछ रोचक तथ्य:

  • चोल साम्राज्य के पास विश्व की सबसे शक्तिशाली नौसेना मौजूद हुआ करती थी।
  • चोल साम्राज्य दुनिया का सबसे ज्यादा शासन करनेवाला साम्राज्य था जिसने लगभग १५०० सालों तक शासन किया था।
  • चोल साम्राज्य के राजा राजेंद्र चोल ने पाला साम्राज्य के राजा को युद्ध में हराया और गंगा नदी को अपने राज्य में शामिल कर लिया और अपने आप को गंगाई कोंडा की उपाधि दी।
  • अपनी नई राजधानी का नाम गंगाई कोंडा चोला पुरम रखा जो आज भी तमिलनाडु में मौजूद है।

५. दिल्ली सल्तनत (१२०६-१५२६ ईस्वी) – Biggest empire in history

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दिल्ली सल्तनत

दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत लगातार ५ वंशों ने दिल्ली पर हुकूमत कायम की जिसे दिल्ली सल्तनत या सल्तनते हिंद भी जाना जाता है। साल १२०६ के बाद महुम्मद गोरी ने अपने गुलाम क़ुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का सुलतान घोषित कर दिया और यही से दिल्ली सल्तनत के पहले वंश गुलाम वंश की शुरुवात हो गयी।

जिसने उत्तर भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया गुलाम वंश के तुरंत बाद साल १२९० में खिलजी वंश सत्ता में आया और जिसने मध्य भारत पर हमले करने शुरू कर दिए पर ये मध्य भारत को दिल्ली के छत्र के निचे लाने में नाकामयाब रहे लेकिन मालवां और देवगिरी पर इनके हमले सफल हुए।

जहा से अलाउद्दीन खिलजी के नेतृत्व में बेशुमार दौलत लूटी गई इसी दौरान अलाउद्दीन का वारंगल के तरफ से निकला जहा से अलाउद्दीन खिलजी को कोहिनूर हीरा मिला था।

दिल्ली सल्तनत की स्थापना:

मुहम्मद गोरी ने तराई की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हराया और दिल्ली सल्तनत की स्थापना की। १२०६ ईस्वी में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई थी। दिल्ली सल्तनत की सिंहासन पर कुल ५ राजवंशो ने शासन किया था और कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का पहला सुल्तान बनाया गया था।

  • दिल्ली सल्तनत के ५ राज वंश:-
    १. गुलाम वंश १२०६-१२९० ईस्वी
    २. खिलजी वंश१२९०-१३२० ईस्वी
    ३. तुगलक वंश १३२०-१४१४ ईस्वी
    ४. सैयद वंश १४१४-१४५१ ईस्वी
    ५. लोदी वंश १४५१-१५२६ ईस्वी

दिल्ली सल्तनत के प्रमुख शासक:

  • कुतुबुद्दीन ऐबक (१२०६-१२१०)
    कुतुबुद्दीन ऐबक का जन्म तुर्किस्तान में हुआ था और कुतुबुद्दीन ऐबक बचपन में ही अपने माता-पिता से बिछड़ गया था।
    यह एक तुर्क जनजाति का था। यह गुलाम वंश का पहला सुल्तान और दिल्ली सल्तनत का स्थापक भी था।
  • इल्तुतमिश (१२१०-१२३६)
    कुतुबुद्दीन ऐबक के मृत्यु के बाद आराम शाह को शासक बनाया गया परंतु दिल्ली के अमीरों ने इल्तुतमिश को नया शासक नियुक्त किया दिल्ली का सुल्तान बनने से पहले इल्तुतमिश बदायूं का सूबेदार था।
  • बलबन (१२६५-१२८६)
    बलबन चालीसा का सदस्य था और खुद की रक्षा करने के लिए उसने इल्तुतमिश के परिवार को मार डाला और बलबन ने सिंहासन पर बैठते ही सुल्तान के पद की गरिमा कायम की और दिल्ली सल्तनत की सुरक्षा के प्रबंध किया।
  • अलाउद्दीन खिलजी (१२९६-१३१६)
    अलाउद्दीन खिलजी अपने वंश का दूसरा शासक था और कहा जाता है की अपने जूनून के बल पर ही युद्ध के मैदान में विजयी हो जाता था। दक्षिण भारत में जीत के बाद उसका प्रभाव अचानक ही काफी बढ़ गया और साम्राज्य का विस्तार भी हो चुका था।
  • मुहम्मद तुगलक (१३२५-१३५१)
    मुहम्मद तुगलक का असली नाम जूना ख़ाँ था। मुहम्मद तुगलक दिल्ली सल्तनत का सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा और योग्य सुल्तान था। मुहम्मद तुगलक फ़ारसी और अरेबिक दोनों भाषावों का विद्वान था और बहोत ही ज्यादा धार्मिक होने साथ ही वह गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा और फिलॉसोफी अधभुत ज्ञान रखता था।
  • फिरोजशाह तुगलक (१३५१-१३८८)
    फिरोजशाह तुगलक दिल्ली सल्तनत में तुगलक वंश का दूसरा शासक था। जिसका जन्म १३०९ में हुआ था और मुहम्मद तुगलक की मृत्यु के बाद ही फिरोजशाह तुगलक का राजयभिषेक खट्टा के निकट हुआ और सुल्तान बनने के बाद में फिरोजशाह तुगलक ने सभी कर्जे माफ़ कर दिए थे।

दिल्ली सल्तनत की उपलब्धियां:

  • गुलाम वंश के संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुबमीनार के निर्माण को प्रारंभ किया।
  • खिलजी वंश का दूसरा परन्तु सर्वशक्तिशाली सुल्तान दक्षिण भारत को जितने वाला प्रथम मुस्लिम सुल्तान था और भूमि की नाप करने वाला प्रथम सुलतान था। आर्थिक सुधार कर स्थायी सेना का संगठन करने वाल प्रथम तुर्की सुल्तान था।
  • तुगलक वंश कट्टर धार्मिक होने के साथ-साथ वह बहोत ही उदार था और इसी कारण उसने एक धर्म के प्रति अधिक कार्य किया। राजकीय पदों को पैतृक बना दिया और कई कृषि कर समाप्त कर दिए। दस प्रथा एवं जागीर प्रथा पुनः प्रचलित कर दी।
  • सैयद वंश का संस्थापक लेकिन उसने शाह की उपाधी धारण नहीं की थी।
  • लोधी वंश का संस्थापक अफगानोंके के प्रति सदैव उदार रहा तथा समानता का व्यवहार किया। जौनपुर के महमूद शाह शर्की का दमन किया।
    दिल्ली सल्तनत में ही व्यापार और कृषि को बढ़ावा दिया और दिल्ली सल्तनत में कुतुब मीनार, हुमायूँ का मकबरा, और लोदी गार्डन जैसे कई भव्य इमारतों और स्मारकों का निर्माण किया गया।
  • अगर देखा जाए तो दिल्ली सल्तनत की जब तक थी उसी दौरान दौरान उर्दू और हिंदी भाषाओं का विकास हुआ था।

दिल्ली सल्तनत का पतन:

  • दिल्ली सल्तनत में केंद्रीय शक्ति की दुर्बलता होने के कारण कई सूबेदारों ने विद्रोह कर अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया।
  • प्रजा का असहयोग क्यूंकि दिल्ली सल्तनत की अधिकांश प्रजा हिन्दू थी और उनके दृष्टी में मुस्लिम शाशक विदेशी ही बने रहे।
  • सहिष्णुता का अभाव जिसके कारण उन्होंने अपने धर्म के लोगों को प्राथमिकता और अन्य धर्म के लोगों को सामान अधिकार नहीं दिए।
  • 1526 ईस्वी में पानीपत की प्रथम लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराया और उसके अंत के साथ दिल्ली सल्तनत का भी अंत हुआ और एक नए वंश मुगल साम्राज्य की स्थापना की।

दिल्ली सल्तनत का महत्व:

  • दिल्ली सल्तनत ने अपने शासन काल में उत्तर भारत में मुस्लिम शासन की नींव रखी और उसका प्रसार भी किया गया।
  • दिल्ली सल्तनत में कला, वास्तुकला, साहित्य और संस्कृति को बहोत महत्व और बढ़ावा दिया गया ओर जो आज भी पूरी दुनिया में जाना जाता है।

६. मराठा साम्राज्य (१६७४-१८१८ ईस्वी)

मराठा साम्राज्य की शुरुवात १६७४ ईस्वी में छत्रपति शिवाजी महाराज के द्वारा हुई थी और शुरुवात से ही मराठा साम्राज्य एक बड़ी ताकादवर सेना रही थी। औरंगजेब के वक्त में भी मुग़ल साम्राज्य के लिए मराठा साम्राज्य एक बहुत बड़ा खतरा रहा था तब मुग़ल हुकूमत बड़ी तेजी से कमजोर पड़ने लग जाती है।

मराठा साम्राज्य की स्थापना:

मराठा साम्राज्य या मराठा महासंघ भारतीय साम्राज्यवादी शिक्त थी जो १६७४ से १८१८ अस्तित्व में रही। मराठा साम्राज्य की नीव छत्रपती शिवजी महाराज ने १६७४ में डाली और उन्होंने कई वर्षों तक औरंगजेब के मुग़ल साम्राज्य के साथ-साथ संघर्ष किया। यह साम्राज्य लगभग १८१८ तक चला और पुरे भारत में फैल गया।

मराठा साम्राज्य के प्रमुख शासक:

  • छत्रपति शिवाजी महाराज (१६२७-१६८०)
    मराठा साम्राज्य की निर्माण छत्रपति शिवजी महाराज द्वारा की गयी। छत्रपति शिवजी महाराज मराठा परिवार से थे। ये अपने कार्यकाल में कुशल राजा और अच्छे सैनिक के तौरपर देखे जाते थे।
  • छत्रपति संभाजी महाराज (१६५७-१६८९)
    छत्रपति संभाजी महाराज मराठा साम्राज्य के दूसरे उत्तराधिकारी और उनके बड़े पुत्र थे।
  • छत्रपति राजाराम महाराज (१६७०-१७००)
  • छत्रपति शाहू महाराज (१८७४-१९२२)
  • बाजीराव प्रथम (१७१३-१७४०)
  • बाजीराव द्वितीय (१७७५-१८५१)

मराठा साम्राज्य की उपलब्धियां:

  • छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठों के लिए एक स्वतंत्र राज्य के स्थापना के बाद इनके लिए कुशल प्रशासनिक व्यवस्था कायम कर दी।
  • छत्रपति शिवाजी महाराज ने ८ मंत्रियों की नियुक्ति की जिन्हे अष्ट प्रधान के नाम से जाना जाता था और प्रत्येक मंत्री के लिए अलग-अलग विभाग निश्चित किये गए थे।
  • १६७४ अपने राज्य रोहन के उपरांत उन्होंने अन्य मराठा सरदारों की तुलना स्वयं को उच्च श्रेणी में की थी।
  • मराठा साम्राज्य शक्तिशाली घुड़सवार सेना के लिए पुरे भारत भर में जाना जाता था।
  • मराठा साम्राज्य के कार्यकाल में उन्होंने ने व्यापार और कृषि को महत्व और बढ़ावा दिया।
  • मराठा साम्राज्य के कार्यकाल में ही जाति व्यवस्था कम किया और महिलाओं उनके आर्थिक और मौलिक अधिकारों को मिलने के लिए बढ़ावा देने का प्रयास किया गया।

मराठा साम्राज्य का पतन:

  • संगठन के अभाव के कारण मराठों का एक विशाल साम्राज्य होने के बजूद उसकी सबसे बड़ी कमजोरी यह थी की वह संगठित नहीं थे।
  • केन्द्रीय सत्ता का अभाव के वजहसे मराठों के पास कोई भी केंद्रीय शक्ति नहीं थी जिसे अधीन रहकर सभी मराठा सरदार एकजुट होकर मराठा साम्राज्य के कल्याण के सहयोग के साथ कार्य कर सके और केंद्रीय शक्ति का अभाव मराठों के पतन का सबसे बड़ा कारण बना था।
  • दोषपूर्ण सैन्य संगठन भी मराठा साम्रज्य के पतन का कारण था।
  • मराठा साम्राज्य १७६१ ईस्वी में पानीपत में हुई ३ री लड़ाई में मराठों को हार मिली उसके बाद उनकी ताकद काफी कम हो गयी थी।
  • मराठा साम्राज्य का १८१८ ईस्वी में हुए तीसरे एंग्लो-मराठा युद्ध में मराठा साम्राज्य का आखिर कार अंत हो गया।

मराठा साम्राज्य का महत्व:

  • छत्रपति शिवाजी महाराज को भारतीय नौसेना का जनक माना जाता है उन्होंने अपने कार्यकाल में कई किलों और जहाजों का निर्माण किया और नौसेना का विस्तार किया।
  • मराठा साम्रज्य को हिंदवी साम्राज्य के नाम से भी जाना जाता है जिसका मतलब होता है लोगों का साम्राज्य होता है।
  • मराठा साम्राज्य पहला ऐसा साम्राज्य था जो बड़े मुगल साम्राज्य को चुनौती देता था।
  • मराठा साम्रज्य के कार्यकाल के दौरान मराठी भाषा और संस्कृति का विकास हुआ था।

FAQ:-

  1. भारत में कौन सा राजा कभी युद्ध नहीं हारा?
    कहा जाता है की बाजीराव प्रथम ने अपने कार्यकाल में एक भी युद्ध नहीं हारा है।
  2. इतिहास का सबसे अच्छा राजा कौन था?
    सम्राट अशोक को इतिहास का सबसे अच्छा और शक्तिशाली राजा माना जाता है।
  3. भारत पर सबसे ज्यादा शासन किसने किया?
    भारत पर सबसे ज्यादा शासन मौर्य साम्राज्य ने किया है।
  4. दुनिया का सबसे बुद्धिमान राजा कौन था?
    महाराजा विक्रमादित्य को दुनिया का सबसे बुद्धिमान राजा माना जाता जो उज्जैन के महाराज हुआ करते थे।
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