Bhagat Singh Contribution In Freedom Struggle – सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है। दोस्तों ये लब्ज उस भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के है जिनके साहस, बलिदान और शौर्य की गाथा आज भी देशभर में गायी जाती है। शहीदे आजम कहे जाने वाले इस वीरपुरुष ने ना केवल ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपने हथियार उठाये बल्कि इन्होने अपनी कलम की ताकद से भी ब्रिटिशों के छके छुड़ा दिए।
महज २३ साल की उम्र में ब्रिटिशर्स को घुटने टेकने पर मजबूर कर देने वाले और भारत माता की जयजयकार करते हुए खुशी-खुशी फांसी का फंदा चुम लेने वाले वीर भगत सिंह को किसी परिचय के आवश्यकता नहीं है क्यूंकि उनका नाम हर भारतीय के दिल में बसता है।
इन्होने देश के बच्चे-बच्चे में मातृभूमि के लिए बलिदान और शौर्य की भावना जागृत करने का कार्य किया था। महान क्रांतिकारी का अल्प जीवन काफी प्रेरणा देने वाला है और आज के कहानी में हम इन्ही महान क्रांतिकारी भगत सिंह के बारे में जानेंगे।
भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन – Bhagat Singh History
भगत सिंह का जन्म २७ सितम्बर १९०७ में पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा नामक गांव के एक सिख परिवार में हुआ और इनके जन्म के समय इनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह तथा स्वर्ण सिंह कॉलेनाइजे़शन बील का विरोध करने के कारण जेल की सजा काट रहे थे। भगत सिंह का पूरा परिवार भी भारत की आज़ादी के संघर्ष में शामिल था।
इसीलिए इनका बचपन स्वतंत्रता सेनानियों के बिच गुजरा और भगत सिंह के मन में भी छोटी उम्र में ही देश की आझादी का सपना घर कर गया। भगत सिंह अपनी माँ विद्यावती कौर के आँखों के तारा हुआ करते थे। इन्होने अपनी माता से बुद्धि कौशल, सवेंदनशीलता, सहानुभूति और अंतरज्ञान जैसे गुण सीखे तथा अपने स्वतंत्रता सेनानी पिता से प्रेरित होते हुए इन्होने अपने अंदर साहस, बलिदान और देशभक्ति की भावना को विकसित किया।
देशभक्ति के भावना की झलक हमे उनके बचपन के एक किस्से में साफ़ दिखाई देती है। दरसल नन्हें भगत सिंह ने अपने पिता को खेतों में आम की गुठलिओं को गोते हुए देखा और अपने पिता को ऐसा करते देख भगत सिंह ने उनसे प्रश्न किया की वह क्या कर रहे है ?
जवाब देते हुए उनके पिता ने कहा की वो बीज बो रहे है जो आगे चलकर एक पेड़ बनेंगा और बहुत सारे फल प्रदान करेंगा तभी अपनी पिता की इन बातों को सुन भगत सिंह फ़ौरन अपने घर गए और वहा से एक बंदूक लेकर आये और उस बंदूक को बीज की ही तरह मिटटी में दबाने लगे तभी उन को ऐसा करते देख उनसे पिता ने पूछा तो भगत सिंह ने जवाब दिया की वह बीज बो रहे है।
जिससे खेतों में भी बंदूक के भी पेड़ उगेंगे और कुछ समय बाद उनके पास कई सारी बंदूके होंगी जिसकी मदत से वह ब्रिटिशर्स के साथ आझादी की जंग लड़ सकेंगे। भगत सिंह की ऐसी मासूमियत और देश भक्ति की भावना देख उनके पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया और उन्हें यकीं हो गया की उनका बेटा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में जरुर योगदान देंगा।
इसके अलावा भगत सिंह बचपन से ही आक्रमक स्वभाव के थे और अनोखे खेल खेला करते थे। जब वे ५ साल थे तब अपने साथियों को दो अलग ग्रुप में बांट दिया करते थे और फिर एक-दूसरे आक्रमन कर युद्ध का अभ्यास करते थे। इस तरह का युद्ध अभ्यास भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन में भाग लेने के उद्देश्य से किया करते थे।
भगत सिंह के हर काम में वीर, धीर और निर्भीक होने का प्रमाण मिलता है और ये बचपन से ही हर किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित कर लेते थे। जब इनकी शिक्षा लेने की बारी आई तब इन्होने ब्रिटिश हुकूमत के स्कूल में दाखिला लेने से साफ़ मना कर दिया और अपना दाखिला दयानंद एंग्लो वेदिक स्कूल में कराया।
भगत सिंह पढ़ने में काफी होशियार और काफी तेज हुआ करते थे और उन्होंने अपनी कोर्स बुक्स के अलावा देश विदेश के कई मशहूर किताबों का अध्ययन भी किया। इनकी रूचि ख़ास तौर पर सोशल, पोलिटिकल और इकोनॉमिक रिफॉर्म्स पर आधारित किताबों के प्रति हुआ करती थी। इनके अध्ययन से छोटी उम्र में ही भगत सिंह को देश-विदेश के सोशल सिनेरियो का ज्ञान हो चूका था।
भगत सिंह के जीवन में एक नया अध्याय तब शुरू हुआ जब १३ अप्रैल १९१९ को जलियांवाला बाग़ हत्या कांड हुआ और त्रासदी से १२ वर्षीय भगत सिंह इतने आहात हुए की वे अगले ही दिन पैदल ही अमृतसर की ओर चल पड़े और जलियांवाला बाग़ पहुंचते ही उन्होंने चारों ओर खून से लथपत लाशों का भयानक मंजर देखा इससे उनके अंदर ब्रिटिशर्स के खिलाफ अत्यंत क्रोध और बदले की भावना उत्पन हुई।
उन्होंने एक बोतल में खून से सनी मिटटी को भरा और वापस लाहौर आ गए और यहां आने के बाद उन्होंने ब्रिटिशर्स को भारत से मार भगाने का प्रण लिया। वही शुरू के दिनों में भगत सिंह महात्मा गांधी के एक बड़े प्रशंसक के रूप में जाने जाते थे और उन्हें यह पूर्ण विश्वास था की गांधीजी अपने अथक प्रयासोंसे देश आझाद करवा लेंगे।
इसिलए महात्मा गांधी ने जब नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट लांच की तब सभी देशवासिओं की तरह भगत सिंह ने भी इस आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिसा लिया। भगत सिंह खुले आम अंग्रेजो को ललकारा करते थे और गांधी जी के कहने पर ब्रिटिश सरकार द्वारा छापी गयी किताबों को जलाया करते थे।
देश भर में नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट को फूल सपोर्ट मिल रहा था और सबको यह आशा थी की जल्द ही ब्रिटिशर्स भारत छोड़कर चले जाएंगे परन्तु जब चौरी-चौरा कांड के कारण गांधीजी ने इस आंदोलन को वापस ले लिया तब भगत सिंह इस फैसले से काफी निराश हुए और इसी के बाद उन्होंने क्रांतिकारी मार्ग चुना। उन्हें इस बात का एहसास हो चुका था की अहिंसा या शांतिपूर्ण रणनीति में भारत कभी भी आझाद नहीं हो सकता था।
भगत सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियाँ – Bhagat Singh History
अपने कॉलेज के दिनों में ही उनकी मुलाक़ात सुखदेव और भगवती चरण समेत अन्य कई क्रांतिकारिओं से हुई और इनकी सबसे गहरी दोस्ती सुखदेव के साथ हुई। उस समय आझादी की लड़ाई अपने चरम सिमा पर थी और ये वो दौर था जब अंग्रेज शासकों का भारतियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ रहा था। ये सब देखकर भगत सिंह ने खुद की पढाई छोड़ दी और खुद को स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में झोक दिया।
इसी दौरान इनके घर पर इनकी शादी की बाते भी शुरू होने लगी थी परंतु भगत सिंह ने शादी के प्रस्ताव को यह कहकर ढुकराया की, “यदि में भारत के आझादी पहले विवाह करूंगा तो मौत ही मेरी दुल्हन होंगी।” शहीदे आझम के इस फैसले से उनके माता पिता काफी नाराज हुए परंतु वो दोनों भगत सिंह के देश प्रेम के आगे बेबस थे।
ये फैसला लेने के बाद भगत सिंह कानपूर की और चल पड़े और देश की आझादी के लिए भगत सिंह सभी युवावों को जागृत करना चाहते थे लेकिन हर युवा तक यह सन्देश पहुंचाने के लिए उन्हें किसी माध्यम की जरुरत थी। इसीलिए भगत सिंह ने १९२६ के दौरान कीर्ति किसान पार्टी ज्वाइन कर ली और इसी पार्टी द्वारा प्रकाशित मॅगज़ीन कीर्ति के लिए काम करने लग गए।
शुरुवात में भगत सिंह ने ब्रिटिशरर्स के खिलाफ आक्रामक लेख लिखे और पैंफ्लेट्स भी छपवाए और ज्यादा से ज्यादा लोगों को ब्रिटिश हुकूमत के बगावत करने के लिए इकठा करना शुरू कर दिया और इसी दौरान भगत सिंह ने खुद की एक पार्टी का भी गठन किया जिसका नाम उन्होंने नौजवान भारत सभा रखा इस पार्टी का उद्देश्य था की कर्मी और किसानो को ब्रिटश सरकार के खिलाफ जंग छेड़ना था।
भगत सिंह का ऐसा करना ब्रिटिशर्स को रास नहीं आ रहा था और १९२७ में ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया तभी कोर्ट में इनकी पेशी की गयी ६० हजार रुपये देकर उनके पिताने जमानत करवाई परंतु इसके बावजूद भगत सिंह ने ब्रिटिशर्स के खिलाफ आक्रामक लेख लिखना बंद नहीं किए।
इसके बाद १९२७ में काकोरी कांड को अंजाम देने वाले हिन्दुस्तान रिपब्लिक एंड असोसिशन के कुछ क्रांतिकारिओं को ब्रिटिशर्स द्वारा सजा सुनाई गयी जिसके तहत राम प्रसाद बिस्मिल समेत ४ लोगों को फांसी और १६ लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनवाई इस पूरी घटना के बाद हिन्दुस्तान रिपब्लिक एंड असोसिशन की नीव डगमगा गई और ऐसे में जरुरत थी इस पार्टी का नवनिर्माण करने की थी।
इसी संदर्भ हिन्दुस्तान रिपब्लिक एंड असोसिशन के प्रमुख चंद्रशेखर आझाद से मुलाकात की और दोनों ने मिलकर नौजवान भारत सभा और हिन्दुस्तान रिपब्लिक एंड असोसिशन को एकत्रित करने की योजना बनाई इसी के तहत सितम्बर १९२८ में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में एक सीक्रेट मीटिंग की गयी और दोनों पार्टीज का विलय कर दिया गया और इस नयी पार्टी का नाम Hindustan Socialist Republican Association (HSRA) रखा गया।
इसी दौरान सायमन कमिशन का भारत में आगमन हो चूका था और पुरे देश में इसका विरोध किया गया। लाहौर में ऐसे ही एक विरोध प्रदर्शन को लाला लाजपत राय लीड कर रहे थे। ये लोग सायमन गो बैक के नारे लगा रहे थे की पुलिस ने वह लाठी चार्ज शुरू कर दिया इसके दौरान लाला राजपत राय के सर पर लाठी पड़ने से वह गंभीर रूप से घायल हो गए और हॉस्पिटल में उन्होंने यह कहते हुए दम तोडा की, “उनकी मृत्यु ही ब्रिटिशर्स के ताबूत पर आखरी कील साबित होंगी। “
अपने गुरु लाला लाजपत राय जी और अपने अन्य साथिओं के मृत्यु से भगत सिंह का गुस्सा सातवे आसमान पर था और वह किसी तरह ब्रिटशर्स से बदला लेना चाहते थे।
इसके लिए उन्होंने चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु और कुछ अन्य क्रांतिकारिओं के साथ जेम्स स्कॉट की हत्या करने की योजना बनाई और जेम्स स्कॉट ने ही प्रदर्शन कारियों पर लाठीचार्ज का आदेश दिया था। योजना के मुताबिक जेम्स स्कॉट जिस पुलिस थाने में तैनात था उसके पास ही भगत सिंह और उनके साथी छुप गए और स्कॉट के थाने से बहार निकलने का इन्तजार करने लगे।
जैसे ही उन्होंने एक पुलिस वाले को थाने के बाहर आते हुए देखा तो उन्होंने उसपर गोली चली दी और वहा से निकल गए परंतु इस पुरे हत्या कांड में बहोत बड़ी गलती हुई थी। जरसल जय गोपाल स्कॉट की सही पहचान नहीं कर पाए और उनकी जगह लाहौर के डेप्युटी सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस जॉन सॉन्डर्स की हत्या कर दी थी।
जॉन सॉन्डर्स की हत्या की खबर पुरे भारत में आग की तरह फ़ैल चुकी थी जिसके बाद भगत सिंह और उनके साथियों को ढूडने के लिए ब्रिटिश सरकार ने चारों तरफ जाल बिछा दिया था और हर जगह की पुलिस केवल उन्हें ही ठूंडने में जुट चुकी थी और यह भगत सिंह और साथियों के लिए सबसे बड़ी समस्या थी। इसके लिए भी एक योजना बनाई गयी थी।
भगत सिंह ने खुद को बचाने के लिये अपने बाल और दाढ़ी कटवा दी और एक सिख होते हुए भी ऐसा करना भगत सिंह के असिमित देशप्रेम को दर्शाता है। इसके बाद भगत सिंह और राजगुरु ने स्वतंत्रता सेनानी दुर्गा भाभी से मदत मांगी तभी भगत सिंह एक जेन्टलमन के रूप में अंग्रेजी पोशाख और हैट लगाकर तैयार हुए। दुर्गा भाभी उनकी पत्नी बानी तथा राजगुरु एक नौकर की तरह तैयार हुए।
ये तीनों अपना भेश बदलकर लाहौर स्टेशन से कलकत्ता के लिए रवाना हुए और एक साल तक ब्रिटिश पुलिस सरदार भगत सिंह को पकड़ने में नाकाम रहती है पर फिर साल १९२९ में भगत सिंह अरेस्ट हो जाते है। ये गिरफ्तारी भी ब्रिटिश पुलिस की कोई सफलता नहीं होती भगत सिंह ने तो खुद ही अरेस्ट करा लिया था क्यूंकि की साल १९२९ Central Legislative Assembly में दो बिल पास किये जा रहे थे।
Trade Disputes Bill और Public Safety Bill पर Trade Disputes Bill वर्कर्स के राइट्स के खिलाफ था और Public Safety Bill इंडिया में Socialist और Communist के एक्टिविटीज पर लगाम लाने के लिए लाया जा रहा था। Indian Nationalists के विरोध के बावजूद ब्रिटिश गवरमेंट इस बिल को लाने जा रही थी और इसीलिए भगत सिंह ने चंद्रशेखर आझाद, बटुकेश्वर दत्त, शिवराम राजगुरु सुखदेव के साथ मिलकर दिल्ली सेंट्रल असेंबली में बॉम्ब ब्लास्ट करने की योजना बनाई थी।
परंतु इस पूरी प्रक्रिया में भगत सिंह किसी भी तरह का खून खराबा नहीं चाहते थे वो केवल ब्रिटिश सरकार का ध्यान जनता की मांगों की तरफ आकर्षित करना चाहते थे इसी वजह से उन्होंने लो इंटेंसिटी बॉम्ब ब्लास्ट करने का निर्णय लिया गया। ये बॉम्ब किसी को मारने के लिए नहीं था बल्कि भगत सिंह के ही शब्दों में कहे तो, “बहरों को सुनाने के लिए था।”
८ अप्रैल १९२९ को भगत सिंह अपन साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ और दो लो इंटेसिटी बॉम्ब के साथ दिल्ली सेंट्रल असेंबली पहुँच गए और असेंबली में घुसते ही उन्होंने खाली जगह देखकर बॉम्ब फेक दिया और बॉम्ब काफी जोरों से फटा और पूरा असेंबली हॉल धुवे से भर गया इसके बाद भगत सिंह ने अपने पैम्फलेट को हवा में उड़ा दिया और जिसपर साफ़-साफ़ लिखा था “बहरों को सुनाने के लिए धमाका जरुरी है।”
इस पूरी घटना में किसी को बी ही कोई हानि नहीं पहुंची थी पर धमाका काफी तेज था जिससे अंग्रेजो के होश उड़ गए थे और पूरी असेंबली में जोर-जोर से “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा लगाना शुरू कर दिया। भगत सिंह और उनके साथी वहा से भागने की कोशिश नहीं करते बल्कि खुद को अरेस्ट करा लेते हे और ये उनके प्लान का हिस्सा था।
वो चाहते थे की कोर्ट में ट्रायल्स की मदत से अपनी आइडियोलॉजी को सभी तक पहुंचाए और अरेस्ट करने के बाद भगत सिंह के खिलाफ ब्रिटश सरकार दो केस चलाती है। वो थी Assembly Bomb Case और Lahore Conspiracy Case जॉन सॉन्डर्स के मौत के लिए था।
भगत सिंह के अंतिम क्षण – Bhagat Singh Contribution In Freedom Struggle
भगत सिंह ने जेल में भी अंग्रजों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा और उन्होंने जेल में भारतीय कैदिओं और अंग्रेजी कैदिओं के साथ होने वाले भेदभाव और बुरे व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाई इसके साथ ही उन्होंने जेल में पोलिटिकल प्रिसनर्स के लिए उचित सुविधा देने की मांग की थी। इसके लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने जेल में ६४ दिन की भूक हड़ताल कर दी थी।
अब इस हड़ताल से अंग्रेजी अफसर घबराने लगे थे क्यूंकि इतने लम्बे समय तक जल और अन्न का त्याग करते हुए भी भगत सिंह का जोश, उत्साह और देशप्रेम बरकरार था। भगत सिंह जेल में रहते हुए भी आज़ाद थे उन्होंने अपनी तमाम क्रांतिकारी गतिविधिओ से जेल में रहते हुए भी ब्रिटिश पुलिस के नाक में दम कर रखा था।
उन्होंने के कैदियों को एक जुट करकर आंदोलन तो किया ही साथ ही जेल के बाहर अपने युवा साथिओं को जागृत करने के लिए लेख भी लिखे इन लेखों के माध्यम से वे युवाओं को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित करते थे। जेल में रहकर भगत सिंह ने दोबारा किताबे पढ़ना शुरू किया और दो सालों में उन्होंने कमसे कम ३०० किताबे पढ़ डाली थी।
इस बीच ७ अक्टूबर १९३० को जॉन सॉन्डर्स के मर्डर केस में भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गयी और २४ मार्च १९३१ को इन्हें फांसी देने का निर्णय लिया गया।
ब्रिटिश सरकार के इस निर्णय से पुरे भारत में शोक की लहर दौड़ गयी और भारत के कोने-कोने में भगत सिंह की रिहाई के लिए लोग प्रदर्शन करने लगे। पर बात अगर भगत सिंह की करे तो उन्हें फांसी की सजा से कोई डर नहीं था। उनके चहरे की मुस्कान और देशप्रेम अभी बरकरार था बल्कि वो और भी ज्यादा जोशीले हो चुके थे और देशभक्ति की उनकी भावना और बढ़ चुकी थी।
वो ख़ुशी-ख़ुशी अपने प्राण देश की आझादी के लिए और भारत माता की आझादी के लिए निछावर करने के लिए तैयार थे परंतु भारतियों को इनकी फांसी की सजा मंजूर नहीं थी इसीलिए देश भर में हाहाकार मच चुका था। जैसे-जैसे २४ तारीख नजदीक आ रही थी लोगों का प्रदर्शन एक भयंकर त्रासदी का रूप धारण करने लगा था। जगह-जगह दंगे होने लगे ब्रिटिशर्स को ये डर था की उन्हें अपना ये फैसला कही वापस ना लेना पड जाए।
इसलिए ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह की फांसी की तारीख २४ मार्च की बजाय २३ मार्च को कर दिए। फांसी के कुछ दिनों पहले जब जेल अधिकारिओं ने भगत सिंह उनकी आंखरी इच्छा पूछी तो उन्होंने लेनेनं की ऑटोबायोग्राफी पढ़ने की इच्छा जाहिर की और इनकी इस डिमांड को ब्रिटिशर्स द्वारा मान लिया गया।
२३ मार्च को जब जेल अधिकारी उन्हें लेने आये तो भगत सिंह ने उनसे कहा की इस किताब का मात्र एक पन्ना पढ़ने का बचा हुआ है। एक क्रांतिकारी अब दूसरे क्रांतिकारी से अब भेट कर रहा है। मुझे ये पन्ना पढ़ लेने दो और किताब पूरी पढ़ लेने के बाद भगत सिंह जेल अधिकारिओं के साथ खुशी-खुशी अपनी मौत को गले लगाने चल पड़े।
फांसी के तख़्त पर चढ़ने के बाद भगत सिंह ने अपने हाथ पर रस्सी बांधने और चेहरे को काले कपडे ढकने से साफ़ मना कर दिया। ब्रिटिशर्स ने इनके हाथों को तो नहीं बांधा परंतु उनके सर को कानून के नियमा नुसार ढक दिया असके बाद भगत सिंह ने “इंकलाब जिंदाबाद” का जय घोष करते हुए शाम ७:३३ मिनट पर अपने साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ फांसी के फंदे को खुशी-खुशी चुम लिया।
इस तरह भारत माता के वीर सपूत को वीर गति प्राप्त हुई परंतु उनका देशप्रेम, उनकी विचारधारा और उनके जस्बे की कहानी आज भारत के कोने-कोने में बड़े ही उत्साह और गर्व के साथ गाई जाती है।
निष्कर्ष:- Bhagat Singh Contribution In Freedom Struggle
ये थी वीर भगत सिंह की कहानी इस कहानी में हमने भगत सिंह के जीवन और आझाद भारत के निर्माण में उनके अहम भूमिका को समझा है।
FAQ
- भगत सिंह का जन्म स्थान कहां है?
भगत सिंह का जन्म २७ सितम्बर १९०७ में पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा नामक गांव के एक सिख परिवार में हुआ। - भगत सिंह की मृत्यु कब और कैसे हुई थी?
भारतियों को इनकी फांसी की सजा मंजूर नहीं थी इसीलिए देश भर में हाहाकार मच चुका था। जैसे-जैसे २४ तारीख नजदीक आ रही थी लोगों का प्रदर्शन एक भयंकर त्रासदी का रूप धारण करने लगा था। जगह-जगह दंगे होने लगे ब्रिटिशर्स को ये डर था की उन्हें अपना ये फैसला कही वापस ना लेना पड जाए। इसलिए ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह की फांसी की तारीख २४ मार्च की बजाय २३ मार्च को कर दिए। शाम ७:३३ मिनट पर अपने साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ फांसी के फंदे को खुशी-खुशी चुम लिया। - भगत सिंह की आखिरी इच्छा क्या थी?
जेल अधिकारिओं ने भगत सिंह उनकी आंखरी इच्छा पूछी तो उन्होंने लेनेनं की ऑटोबायोग्राफी पढ़ने की इच्छा जाहिर की और इनकी इस डिमांड को ब्रिटिशर्स द्वारा मान लिया गया। - भगत सिंह ने मरते समय क्या कहा था?
इंकलाब जिंदाबाद कहा था।