Moral Stories In Hindi For Class 5 – छोटे बच्चों को हमेशा कहानिया सुनना बहुत ही पसंद होता है। ये छोटी कहानी वे अपने घरपर नाना-नानी से सूना करते है। कहनियों से बच्चों में भाषा का विकास और अच्छे-बुरे की समझ उनमे आती है। कहानियों से बच्चों को नैतिक शिक्षा मिलती है जो उन्हे अच्छे संस्कार ढालने में मदत करती है। बच्चों को खासकर पंचतंत्र की कहानिया, लोक कथाएँ, परियों की कहानियां और नैतिकताकी की कहानिया सुनना और पढ़ना बहोत ही पसंद होता है।
इस आर्टिकल में हम बच्चों के लिए छोटी कहानी इन हिंदी लाए है और इस में नैतिक शिक्षा पर छोटी कहानी है जो एक अच्छी सीख देती है।
माँ की सेवा का फल
हजरत मूसा हर पल खुदा की याद में डूबे रहते थे। उन्हें हर पल खुदा की अनुभूति होती थी। एक दिन इबादत के समय उन्होंने खुदा से पूछा हे परवरिदगार, क्या आप मुझे जन्नत में मेरे पास जगह लेने वाले का नाम बता सहते है।
तब खुदा ने कहा मूसा, तेरा पडोसी जन्नत में भी तेरा पडोसी रहेंगा। मूसा यह सुनकर दंग रह गए। उनका पडोसी मैले-कुचले कपडे पहनकर पेड़ के निचे जूते बनाता था और मूसा ने कभी उसे मस्जिद जाते और नमाज पढ़ते देखा था।
उन्होंने सोचा की जब खुदा ही यह कह रहे है तो उसमे कुछ ख़ास बात जरूर होंगी। एक दिन मूसा उससे मिलने उसके झोपड़ी पहुंचे। वह जुटे बनाने वाला व्यक्ति अपना सामन समेटकर झोपड़ी में घुस ही रहा था। तभी उसने हजरत मूसा को देखा और बोला, “आप मेरे घर पर आए इसके लिए में आपका शुक्रगुजार हूँ।”
आप कुछ देर बैठ जाइए में आप की सेवा में उपस्थित होता हु। इतना कहकर वह व्यक्ति अपनी झोपड़ी में घुस गया और कुछ देर तक बाहर नहीं आया तो हजरत मूसा ने झोपडी में झाकर देखा की वह व्यक्ति बिस्तर पड़ी अपनी बूढी माँ को रुई के फाहे से दूध पीला रहा होता है।
दूध पीते-पीते माँ नींद आती और वह सो जाती है तभी वह व्यक्ति अपनी माँ के पाँव दबाने लगता है। यह सेवा का दृश्य देखकर हजरत मूसा समझ जाते है की खुदा इस व्यक्ति की अपनी माँ की अनूठी सेवा के कारण खुश है।
तभी हजरत मूसा दरवाजा खोलकर अंदर गए और बोले, “माँ तेरे बेटे को खुदा ने तेरी अनूठी सेवा के कारण जन्नत का हकदार बना दिया है।”
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उम्र से परे – Moral Stories In Hindi For Class 5
एक गावं में अनेक वर्षों से बारिश नहीं हो रही थी इसके कारण वश बहुत बड़ा अकाल पड़ गया। लोग जब भूक और प्यास से बेहाल हो गए तब वह गावं छोड़ जाने लगे। उसी गावं में एक युवा मुनिनी सारस्वत सरस्वती नदी के आराधक थे। उन्होने सरस्वती से प्राथना की कि इस अकाल के संकट से उभरन ने के लिए कुछ कीजिए।
सरस्वती ने कहा की तुम निचिंत होकर मेरे तट पर वेदों का पाठ करों और में इस संकट को हराने का प्रयास जरूर करूंगी। मुनि सारस्वत ने वेदों का पढ़ें नदी के तट पर शुरू कर दिया और कुछ ही दिनों में जोरों की बारिश उस गांव में हुई और सरस्वती नदी ने अपने जल से खेत-खलियानो को भर दिया और अब गांव में फिर आनाज की खेती होने लगी।
आस-पास के ऋषिओं को पता चला की मुनि सारस्वत के वेद पठन और तप के कारण गावं का अकाल ही दूर हो गया है। वे सभी मुनि सारस्वत से मिलने पहुंचे और उनसे वेदों के अध्ययन का आग्रह करने लगे। तब मुनि सारस्वत ने कहा की में धर्मशास्रों के अनुसार केवल शिष्यों ही वेदों का अध्ययन करता हूँ।
मुनि सारस्वत से मिलने आए सभी ऋषी उनसे आयु में बड़े थे और जबकि सारस्वत किशोर थे। ऋषिओं ने कहा तुम हमारे सामने बालक समान हो हम तुम्हारे शिष्य कैसे बन सकते है?
मुनि सारस्वत विनम्रता से बोले मैंने संकल्प लिया है केवल शिष्य को ही वेदों का अध्ययन कराऊंगा और में अपने संकल्प को तोड़कर अधर्म का पाप क्यों मोल लूँ?
एक वृद्ध ऋषि ने कहा “ज्ञानी और तपस्वी की उम्र नहीं देखि जाती है।” जो अधिक ज्ञानी होता है वह काम आयु होने पर भी गुरु के समान ही होता है। यह बात सुनकर बाकि ऋषिओं के समझ आया की ज्ञान हमेशा उम्र से बड़ा ही होता है और वह सब मुनि सारस्वत के शिष्य बनकर वेदों का अध्ययन करने लगे।
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सेवा का महत्व – छोटी कहानी इन हिंदी
ये कहनी है कौशिक नामक एक युवा ब्राम्हण की जो गृहस्थ थे और उन्हें भगवान की भक्ति में लीन रहना पसंद था। उन्हें एक दिन लगा की भगवान की उपासना और भक्ति गृहस्ती में रहकर नहीं की जा सकती है। इसीलिए लिए वे एक दिन अपने माता-पिता को छोड़कर वन में साधना करने के लिए चले गए।
उनकी कठोर तपस्या ने उन्हें दिव्य शक्ति प्राप्त हो गयी थी। एक बार वे एक पेड़ के नीचे बैठे थे तभी एक चिड़िया के जोड़े ने उनपर बीट कर दी तो उन्होंने उसे भस्म कर दिया।
एक दिन कौशिक गांव में भिक्षा मांगने के लिए एक घर के सामने खड़े रहे और भिक्षा के लिए आवाज लगाई। उस घर की गृहिणी अपने बीमार पति को औषधी दे रही थी इसीलिए उसे भोजन लाने में देरी हुई। जब वह गृहिणी भोजन लेकर घर के द्वार पर आयी तो उसने देखा की भिक्षुक का चेहरा क्रोध से लाल है।
वह गृहिणी विनम्रता से बोली “महाराज में अपने बीमार पति की सेवा कर रही थी इसीलिए आने में देरी हो गयी।” उस गृहिणी के इन शब्दों का कौशिक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा वह क्रोध में बडबडाते रहे।
अब गृहिणी का धैर्य जवाब दे गया। वह कौशिक से बोली, “महाराज आप गुस्सा क्यों करते हो?” में वह चिड़िया की तरह निर्बल और अबोल नहीं हूँ जो आपके क्रोध में भस्म हो जाउंगी।
गृहिणी की इन बातों को सुनकर कौशिक तुरंत हतप्रभ हो गए और उन्हें लगा की गृहिणी को भी दिव्य दॄष्टि प्राप्त है। तभी ऋषि कौशिक ने उस गृहिणी को धर्म के बारे में पूछा, गृहिणी बोली में सिर्फ किसी भी प्राणिमात्र और जीवों की सेवा करने को ही धर्म मानती हूँ। मेरे लिए पति की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है और अगर आप को धर्म क्या है जानना है धर्मव्याध के पास जाए।
ऋषि कौशिक ने देखा की धर्मव्याध बड़े लगन से अपनी माता-पिता की सेवा में लगे हुए थे। उन्होंने धर्मव्याध से पूछा की धर्म क्या होता है? धर्मव्याध बोला किसी भी जीवित प्राणी की सेवा करना ही मनुष्य का परम धर्म होता है। सेवा में भी भगवान का वास होता है और यही सेवा हमे एक नेक और अच्छा मनुष्य भी बनती है।
धर्मव्याध की बाते सुनकर ऋषि कौशिक को अपने निर्णय पर पछतावा हुआ जो उन्होंने भगवान की उपासना के लिए उन्होंने अपने माता-पिता को छोड़ने का निर्णय लिया था। कौशिक अब अपने घर वापस लौट आए और उन्हें सेवा का महत्त्व समझ आया और अपनी माता-पिता की सेवा करने लग गए।
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